आर्जवम Class 9 नैतिक शिक्षा (मध्यमा ) Chapter 2 Explain – HBSE Solution

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HBSE Class 9 Naitik Siksha Chapter 2 आर्जवम Explain for Haryana Board of नैतिक शिक्षा Class 9th Book Solution.

आर्जवम  Class 9 Naitik Siksha Chapter 2 Explain


अभयं सत्त्वसंशुद्धि, ज्ञानयोगव्यवस्थितिः ।
दानं दमश्च यज्ञश्च, स्वाध्यायस्तप आर्जवम् ॥ – गीता अध्याय 16 श्लोक 1

अर्थात् साधक में भय का सर्वथा अभाव, अन्तःकरण की सम्यक् शुद्धि, ज्ञान के लिए योग में स्थित होना और सात्विक दान, इन्द्रियों का दमन, यज्ञ, स्वाध्याय, तप तथा आर्जवम् आदि जीवन की अक्षय निधि है।

प्यारे बच्चो ! आपको यह ध्यान रखना चाहिए कि उपरोक्त श्लोक में वर्णित जीवन के दिव्य लक्षण जहाँ आपकी अच्छी पढ़ाई में सहायक होंगे, वहीं भविष्य में जीवन को एक उचित आधार देकर आपके जीवन में छुपी हुई महानता को भी उजागर करेंगे। जिस प्रकार अच्छी पढ़ाई केवल वर्तमान समय के लिए ही नहीं हैं अपितु अच्छे कैरियर एवं नीतिपूर्ण धनोपार्जन के द्वारा समग्र जीवन का अच्छा आधार भी है, उसी प्रकार उपरोक्त गुण वर्तमान समय के लिए ही नहीं, बल्कि आपके संपूर्ण जीवन की अक्षय निधि भी हैं।

आर्जवम् शब्द का अर्थ है- स्वभाव की सरलता, सहजता और सीधापन अर्थात् किसी प्रकार की अकड़-अभिमान व छल-कपट का सर्वथा अभाव। जो हम नहीं हैं, वह दिखाना, उसे अहम् पूर्वक प्रकट करना- ऐसा खोटा सिक्का अधिक समय तक नहीं चलता। इस प्रकार के व्यवहार से न तो हमें कहीं उचित सम्मान मिलता है और न ही हम किसी का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।

गीता के प्रथम अध्याय के प्रारम्भ में दुर्योधन गुरु द्रोणाचार्य के पास जाता है। राजपुत्र होने की अकड़ के कारण उसमें विनम्रता का सर्वथा अभाव है। वह गुरु द्रोणाचार्य को पांडवों के विरुद्ध उकसाने के लिए छल-कपटपूर्ण बातें करता है। इसी प्रकार युद्ध से पूर्व वह भगवान श्रीकृष्ण के पास सहायता माँगने के समय अहं और कपट को दिखाता है। इसका परिणाम यह हुआ कि वह किसी से भी आशीर्वाद नहीं ले पाया। भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य उसके पक्ष में होने पर भी उसके साथ नहीं थे।

छल-कपट कभी भी जीवन के यथार्थ को प्रकट नहीं होने देता। वास्तविकता लंबे समय तक छिपी नहीं रह सकती। सूर्य बादलों में कब तक छिपा रह सकता है? अच्छे बनने का प्रयास करो, केवल दिखाने का नहीं। शूर्पणखा बाहर से सुंदर, सीधापन लिए और सहज बनकर आई थी, जबकि उसके भीतर छल-कपट भरा था। इसका परिणाम सभी को पता है। उसी काल में माता शबरी बाहर से न तो सुन्दर थी, न ही ऐश्वर्य सम्पन्न थी। वह जाति से भीलनी थी। लेकिन भीतर से सीधी और सहज थी। इस कारण उन्हें श्रीराम का आश्रय मिला जिसके कारण वह युग-युगांतर तक की अमर प्रेरणा बन गई।

दुर्योधन कपट-भरे मन से भगवान श्रीकृष्ण को अपने महल में ले जाता है और उन्हें कुछ खाने के लिए कहता है। श्रीकृष्ण उसे स्वीकारते नहीं, जबकि विदुर-विदुरानी के निश्छल भाव को देखकर उनकी साधारण सी कुटिया में पहुँच जाते हैं और फल-शाक माँगकर खाते हैं। आज भी विदुर-विदुरानी का सम्मान हर जगह होता है, जबकि किसी ने भी अपने बच्चों का नाम दुर्योधन नहीं रखा।

प्यारे बच्चो ! निश्छल-निष्कपट रहना और अंदर-बाहर से एक जैसा रहना जीवन उत्थान उत्कृष्ट आधार है। आप सोचो कि आपके मन में पढ़ाई की लगन न हो, बस किसी को दिखाने के लिए पुस्तक को हाथ में पकड़ लो; इस प्रकार का व्यवहार तो अपने साथ ही अन्याय है। यदि भक्त के मन में भगवान के प्रति प्रेम न हो, वह केवल दिखावे के लिए माला या पाठ-पूजा करता हो तो क्या भगवान उससे प्रसन्न होंगे? कभी भी नहीं। इसलिए अंदर से सहज-सरल स्वभाव रखकर स्वयं अच्छे बनने की पहल करो।