बुद्धि अच्छी रहे Class 9 नैतिक शिक्षा (मध्यमा ) Chapter 3 Explain – HBSE Solution

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बुद्धि अच्छी रहे  Class 9 Naitik Siksha Chapter 3 Explain


दूरेण ह्यवरं कर्म, बुद्धियोगाद्धनञ्जय ।
बुद्धौ शरणमन्विच्छ, कृपणाः फलहेतवः ॥ – गीता अध्याय 2 श्लोक 49

अर्थात् निन्दनीय कर्मों से दूर रहो तथा शुद्ध भाव से भगवान की शरण में रहो। जो व्यक्ति सकाम कर्मों से फल भोगना चाहते हैं, वे इस भव बंधन में अधिक फँसते हैं।

भगवद्‌गीता में बुद्धि को विशेष महत्त्व दिया गया है। गीता की अनेक सार्वभौमिक उदार ‘बुद्धौ शरणम् अन्विच्छ’ विशेषताओं में से एक प्रमुख विशेषता यह है कि इस ग्रन्थ में कहीं पर भी आदेश की भाषा का प्रयोग करके पाठकों की बुद्धि को बन्द नहीं किया गया, अपितु कई बार स्पष्ट संकेत किया गया है कि बुद्धि का उचित उपयोग करो। यहाँ ‘बुद्धौ शरणम् अन्विच्छ’ अर्थात् बुद्धि के आश्रय से ही जीवन यात्रा में आगे बढ़ो, ऐसी प्रेरणा दी गई है।

प्रिय वत्स ! जीवन तो महत्त्वपूर्ण है ही लेकिन इस जीवन में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका बुद्धि की है। उपनिषद् शास्त्रों में बुद्धि को जीवन रूपी रथ का सारथी कहा गया है। आज के प्रसंग में हम इसे जीवन रूपी गाड़ी का ड्राइवर भी कह सकते हैं। हम सबको इस बात का ज्ञान है कि रथ या गाड़ी कितनी भी अच्छी या महंगी क्यों न हो, यदि चलाने वाला ठीक नहीं है तो स्थिति हानिकारक हो सकती है।

बुद्धि का आश्रय भी तभी सार्थक होगा, जब बुद्धि अच्छी होगी तथा बुद्धि का विवेक जागा हुआ होगा। विवेक बुद्धि की वह क्षमता है जो अच्छे-बुरे में उचित भेद करके सही निर्णय देता है। जैसे सारथी रथ की लगाम जिधर मोड़ेगा या ड्राइवर गाड़ी का स्टेयरिंग जिधर घुमाएगा, रथ या गाड़ी उसी दिशा में चलेगी। इसी प्रकार बुद्धि का जैसा निर्णय होगा, मन वैसा ही विचार या योजना बनाएगा और शरीर रूपी गाड़ी उधर ही चल पड़ेगी। यही गीता का जीवन प्रबंधन (Life management) है। इसमें बुद्धि की सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका है। बुद्धि का बनना या बिगड़ना संगति पर निर्भर करता है। यदि हमारी संगति अच्छी होगी तो बिगड़ी बुद्धि भी संवर जाएगी और सही निर्णय करने लगेगी। लेकिन संगति अच्छी नहीं हुई तो अच्छी-भली बुद्धि भी बिगड़ जाएगी। माता कैकेयी का श्रीराम से अगाध प्रेम सबको पता है। लेकिन मंथरा की कुसंगति ने किस प्रकार से कैकेयी की बुद्धि पर अपना प्रभाव जमा लिया जिसके परिणामस्वरूप कैकेयी ने कठोर निर्णय लिया। यह हम सबको पता है। महाभारत में शकुनि की कुसंगति से धृतराष्ट्र स्वयं निर्णय करने की क्षमता खो बैठे और अधर्म तथा अनीतिपूर्ण निर्णय पर ही अड़े रहे। इसका परिणाम जग जाहिर है। सूर्य के तेज को अपने में संजोए हुए, परशुराम से शिक्षा प्राप्त करने वाला दानवीर कर्ण, दुर्योधन की कुसंगति में कैसे अनर्थकारी निर्णय में अपनी सहमति जताता रहा, यह सबको पता है। एक बात और व्यावहारिक व वैचारिक है कि बिगड़ी बुद्धि किसी की अच्छी बात माननी तो दूर, सुनने को भी तैयार नहीं होती। वहाँ तो एक ही निर्णय होता है कि ‘जो मैं कर रहा हूँ, वही ठीक है’, लेकिन परिणाम कतई अच्छा नहीं। रावण को सबने समझाया लेकिन उसने किसी की नहीं सुनी। किसी भी पात्र के जीवन को देखें और गीता की इस प्रेरणा को सामने रखें-बुद्धि का विवेक जागृत करें और उसी के आश्रय में जीवन यात्रा में आगे बढ़ें।