आधार पक्का-जीवन अच्छा Class 10 नैतिक शिक्षा (मध्यमा ) Chapter 1 Explain – HBSE Solution

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आधार पक्का-जीवन अच्छा Class 10 Naitik Siksha Chapter 1 Explain


तस्मात्सर्वेषु कालेषु, मामनुस्मर युध्य च।
मय्यर्पितमनोबुद्धि, मामेवैष्यस्यसंशयः ॥ – गीता अध्याय 8 श्लोक 7

अर्थात् हे अर्जुन ! इसलिए तू हर समय मेरा स्मरण कर और युद्ध भी कर, क्योंकि मुझ में मन और बुद्धि अर्पित करने वाला तू निःसंदेह मुझे ही प्राप्त होगा।

“सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च” यह कथन भगवद्‌गीता की एक अद्भुत प्रेरणा है जो कहीं भी, कभी भी, किसी के भी जीवन का मजबूत आधार बन सकती है। भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं तू हर समय मेरा स्मरण करते हुए युद्ध कर। भगवान् ने यह बात महाभारत के युद्ध के समय कही थी। लेकिन मन में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि अब कौन-सा युद्ध, कैसा युद्ध? यहाँ युद्ध से अभिप्राय वस्तुतः जीवन में आने वाली किसी भी चुनौती या संघर्ष से है, क्योंकि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में कुछ-न-कुछ संघर्ष साथ रहता ही है। कभी अनुकूलता तो कभी प्रतिकूलता, कभी सकारात्मकता तो कभी नकारात्मकता, कभी शुभ, कभी अशुभ। ये सभी महाभारत के ही एक रूप हैं।

पढ़ाई के दिनों में आप यह महसूस करेंगे कि आगे बढ़ने की, अच्छे अंक लेने की या मैरिट में आने की भावना भी अपने आप में एक चुनौती प्रतीत होती है। इसके लिए अनेक बार संघर्ष भी करना पड़ता है। इस संघर्ष में कभी हमें अच्छी संगति अपनी ओर खींचती है तो कभी वर्तमान वातावरण के अनुसार बुरी संगति भी अपना प्रभाव जमाने की कोशिश करती है।

बच्चो ! ये सभी चुनौतियाँ एक युद्ध जैसी ही लगती हैं। अब प्रश्न यह उठता है कि कैसे इस स्थिति का दृढ़ता से सामना किया जाए? किस प्रकार साहसपूर्वक अपना सही रास्ता निकाला जाए। इसका एक ही उत्तर है- ‘मामनुस्मर’ अर्थात् भगवान का स्मरण करते हुए इस स्थिति से उभरा जा सकता है। यहाँ मन में यह भी बात उठ सकती है कि भगवान् की याद कैसे और उसका लाभ क्या? भगवान् की याद भी बनी रहे और पढ़ाई भी होती रहे- ये दोनों काम एक-साथ कैसे संभव होंगे?

आओ, हम इसे अच्छी प्रकार से समझते हैं। परमात्मा संपूर्ण सृष्टि और जीवन के भी आधार हैं। सृष्टि का सब कुछ सदा चक्र में है। दिन-रात, सर्दी-गर्मी, बचपन, यौवन, वृद्धावस्था, संयोग-वियोग, आना-जाना यह सब कुछ सृष्टि चक्र के अनुसार घटित होता रहता है।

लेकिन सृष्टि परिवर्तन के इस क्रम में एकमात्र ईश्वर की सत्ता है, जो शाश्वत, स्थिर एवं अपरिवर्तनीय है। इस बात को तो विज्ञान भी सिद्ध कर चुका है कि परिवर्तन तभी संभव है जब आधार अपरिवर्तनीय हो। पंखा तभी चलता है जब बीच में धुरी (axel) स्थित होती है। उसके चारों ओर पंखे के पर (Blades) घूमते हैं। किसी भी वाहन के पहिए तभी घूमते हैं जब मध्य में स्थिर धुरी होती है। इसी प्रकार निरंतर परिवर्तनशील इस संसार की धुरी परमात्मा है, जिसके आधार पर यह संसार चल रहा है।

‘मामनुस्मर युध्य च’ की स्थिति को आज के वैज्ञानिक संदर्भ में हम इस प्रकार समझ सकते हैं कि संसार चक्र में है और कर्मों की व्यवस्था के अनुसार हमारा शरीर स्थिरता में रह ही नहीं सकता। कहीं आना-जाना, कुछ करना-करवाना, मिलना-मिलाना यह सब रहेगा ही। परमात्मा को आधार रूप में साथ रखते हुए मन को स्थिर और शांत रखो। मन की स्थिरता के लिए स्थिर परमात्मा का आधार ग्रहण करना जरूरी है।

बच्चो ! आपने रेखागणित (Geometry) में वृत्त तो बनाया ही होगा। पेंसिल और परकार का एक सिरा जब एक बिंदु पर स्थिर रहता है, तभी उसका दूसरा सिरा ठीक ढंग से चक्र लगा पाता है, अन्यथा नहीं। यह संकेत इसलिए है कि यदि मन को चिंता, दुविधा आदि की अस्थिरता में न लाओ तो जीवन का वृत्त बिगड़ने लगता है। सफलता भगवान् की कृपा पर ही निर्भर है, ऐसा मानकर अपनी ओर से कर्म करो। कर्म करते हुए अपने भीतर की चेतना को जगाए रखो। भगवान् की शक्ति के बिना कुछ भी संभव नहीं होता। अपने मन में प्रभु के प्रति विश्वास एवं एहसास का अनुभव करते हुए अपनी पढ़ाई एवं दिनचर्या के अन्य आवश्यक कार्य करते रहो।

प्यारे बच्चो ! ऐसा करने से आप देखोगे कि आपके भीतर का मनोबल बढ़ेगा तथा जीवन में दृढ़ता रहेगी। इसके साथ ही पढ़ाई में आपकी एकाग्रता बढ़ेगी। आपके अंदर साहस और उत्साह बढ़ेगा। यह तो आप जानते और समझते ही हैं कि जीवन में उत्साह के बिना किसी भी क्षेत्र में आगे नहीं बढ़ा जा सकता। यदि आप उत्साहपूर्वक जीवन जीना, आगे बढ़ना तथा एकाग्रता और विश्वासपूर्वक पढ़ना चाहते हो तो आओ, पाठ में वर्णित श्लोक को अपनी प्रेरणा बनाएँ। गीता को अपना सच्चा पथ-प्रदर्शक समझें।