अच्छे गुणों से ही बनेगा जीवन अच्छा Class 10 नैतिक शिक्षा (मध्यमा ) Chapter 2 Question Answer – HBSE Solution

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अच्छे गुणों से ही बनेगा जीवन अच्छा Class 10 Naitik Siksha Chapter 2 Question Answer


पाठ से –


प्रश्न 1. प्रार्थना की स्थिति को किस रूप में ठीक समझें?

उत्तर- अपने आराध्य या इष्ट देव को प्रसन्न करने के लिए किए गए पूजा-पाठ, जप-तप, माला आदि को प्रार्थना कहते हैं। प्रार्थना करने वाले व्यक्ति की प्रार्थना तभी सफल होती है जब उसे मन, कर्म व वचन से किया जाए। केवल बाहर से दिखावे के लिए की गई प्रार्थना, प्रार्थना नहीं होती। हमारी प्रार्थना तभी सफल होगी जब हम उसे अंदर के मन से करेंगे। प्रार्थना की इसी स्थिति को हम प्रार्थना समझें।


प्रश्न 2. गीता के 11वें अध्याय के 26 से 35 तक के श्लोकों में भगवान् श्रीकृष्ण से प्रार्थना करने से पूर्व अर्जुन की क्या स्थिति थी और इन श्लोकों में किस भाव से अर्जुन ने स्तुति और प्रार्थना की?

उत्तर- पाठ में न तो इन श्लोकों का उल्लेख है और न ही इनकी विषय-वस्तु का वर्णन है।


प्रश्न 3. अर्जुन ने प्रार्थना के स्वरों में भगवान् के समक्ष क्या स्वीकार किया?

उत्तर- अर्जुन ने प्रार्थना के स्वरों में भगवान् के समक्ष यह बात कही कि हे भगवन् ! इस युद्ध में मैं स्वजनों को मारकर कल्याण नहीं देखता। हे कृष्ण! मैं न तो विजय चाहता हूँ और न ही सुखों की इच्छा है। गोविंद हमें ऐसे राज्य से क्या प्रयोजन होता है जो अपनों को मारकर मिले। हे भगवन! ऐसे जीवन का भी क्या लाभ जिसमें अपनों को मारने का पाप लगे। ऐसा कहकर शोक से आवेग को न सहन करते हुए अर्जुन बाण धनुष को त्यागकर रथ के पिछले भाग में बैठ गए।


प्रश्न 4. स्तुति-प्रार्थना करने से क्या प्रभाव पड़ सकता है?

उत्तर – स्तुति या प्रार्थना में भक्त द्वारा अपने इष्ट देव का ऐसा गुणगान होता है जिसमें वह अपने आराध्य के रूप, स्वरूप, महिमा एवं संसार के संरक्षण में उसकी भूमिका आदि का वर्णन करता है। तन्मय होकर आराध्य की उपासना एवं प्रार्थना से भक्त की आस्था का प्रकाशन होता है। इसके साथ ही भक्त में भगवान् के प्रति निरन्तर दृढ़ता आती है।


प्रश्न 5. विद्यार्थी जीवन में आप ईश्वर को कैसे प्रसन्न कर सकते हैं?

उत्तर – विद्यार्थी जीवन में मेरा एकमात्र लक्ष्य अपनी पढ़ाई है। फिर भी अपने अन्दर आत्मविश्वास की भावना जगाने के लिए मैं अपने माता-पिता के द्वारा जो धार्मिक कार्य होते हैं, उनमें भाग लेकर ईश्वर को प्रसन्न कर सकता हूँ। सप्ताह में एक-दो बार मंदिरों में जाकर देवी-देवताओं के दर्शन करके उन्हें प्रसन्न करने का कार्य कर सकता हूँ।


आपकी समझ –


प्रश्न 1. प्रतिदिन प्रार्थना करना क्यों आवश्यक है?

उत्तर- प्रार्थना करने से हमें आत्म-बल, विश्वास एवं संबल मिलता है। इससे हमारा स्वास्थ्य अनुकूल रहता है। प्रार्थना करने से हमें मानसिक संतुष्टि मिलती है। प्रार्थना करने से पहले हम अपने इष्ट या आराध्य का ध्यान करते हैं, जिससे हमारा मन पवित्र हो जाता है। हमें विश्वास होता है कि ईश्वर की प्रार्थना के बाद हम जो भी काम करेंगे उसमें हमें सफलता अवश्य मिलेगी। इसलिए प्रार्थना करना आवश्यक है।


प्रश्न 2. ईश्वर का प्रेम कैसे प्राप्त कर सकते हैं?

उत्तर-  हम अपने धर्म-मार्ग का अनुसरण करते हुए ईश्वर को प्रसन्न कर सकते हैं। गीता के अनुसार, धर्म का अर्थ है- नीति, न्याय, सद्गुण, परहित की भावना और मानवता की सेवा। जीवन में इन सद्गुणों को अपनाते हुए हमारे जो भी आराध्य हैं उनका सच्चे मन से ध्यान करें। उनकी पूजा, स्तुति, आराधना करें तो ईश्वर प्रसन्न हो सकते हैं।