सफलता के सूत्र Class 10 नैतिक शिक्षा (मध्यमा ) Chapter 3 Question Answer – HBSE Solution

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HBSE Class 10 Naitik Siksha Chapter 3 सफलता के सूत्र Question Answer for Haryana Board of नैतिक शिक्षा Class 10th Book Solution.

सफलता के सूत्र Class 10 Naitik Siksha Chapter 3 Question Answer


पाठ से-


प्रश्न 1. गीता के अनुसार कर्म की सफलता के लिए कौन से तथ्य सहयोग करते हैं?

उत्तर- गीता के अनुसार कर्म की सफलता के लिए अधिष्ठान, कर्ता, करण (साधन), चेष्टा और दैव (भाग्य), ये पाँच तथ्य सहयोग करते हैं।


प्रश्न 2. मनुष्य की श्रेष्ठता कैसे आंकी जा सकती है?

उत्तर- मनुष्य की श्रेष्ठता उसकी सफलता से आंकी जा सकती है। वह अपने जीवन में कितना सफल है, इसी से उसकी श्रेष्ठता का निर्धारण हो सकता है। उसके जीवन की सफलता ही उसे श्रेष्ठता की श्रेणी में ला सकती है। मनुष्य धर्म अर्थात् नीति, न्याय, सद्गुण, परहित की भावनाएँ तथा मानवता के साथ अपने लक्ष्य को प्राप्त करे। वह अपने कार्य में सफल हो, यही उसकी श्रेष्ठता है।


प्रश्न 3. भारतीय संस्कृति की उच्च परम्परा क्या है और उसका महत्त्व क्या है?

उत्तर- भारतीय संस्कृति की उच्च परम्परा के अन्तर्गत धर्म, नीति, न्याय, सद्गुण, परहित की भावना और मानवता आदि आते हैं। इनका जीवन में विशेष महत्त्व है। जीवन में जो व्यक्ति इस भारतीय संस्कृति पर विश्वास करते हुए इसके अनुसार अपना जीवन-यापन करता है, वही वास्तव में एक सच्चा मानव है।


प्रश्न 4. विचारों की जीवन में क्या भूमिका है?

उत्तर – विचारों की जीवन में विशेष भूमिका है। मनुष्य के अंदर जिस प्रकार के विचार होंगे, उसका जीवन उसी के अनुरूप होगा। यदि व्यक्ति के अंदर अच्छे विचार होंगे तो वह जीवन में हमेशा अच्छा कार्य करेगा। उसकी संगति हमेशा अच्छे लोगों के साथ ही रहेगी। लेकिन यदि उसके अंदर बुरे विचार आते हैं तो वह वैसा ही बन जाएगा और उसके कर्म भी वैसे ही होंगे।


प्रश्न 5. गीता में तीन प्रकार के आधार कौन-से हैं? उनका परिणाम क्या है? कौन-सा आधार उचित है?

उत्तर- गीता में जीवन की सफलता के पाँच सूत्रों की चर्चा की गई है जिनमें अधिष्ठान, कर्त्ता, करण, चेष्टा और दैव हैं। अधिष्ठान से अभिप्राय है-आधार। अधिष्ठान को ही सफलता प्राप्त करने वाले व्यक्ति का आधार माना गया है। जो व्यक्ति सफल होना चाहता है, उसके अंदर सबसे पहले यह विचार आना चाहिए कि वह जो कार्य कर रहा है, उस कार्य को करने के पीछे उसका भाव या लक्ष्य क्या है? जिस लक्ष्य को मानकर कार्य करना चाहता हूँ, उसका आधार क्या है, व्यक्ति का आधार हमेशा धर्मपूर्ण होना चाहिए। परमात्मा को आधार मानते हुए हम अपने कर्म में प्रवेश करें। परमात्मा की कृपा से हमें कार्य में सफलता अवश्य मिलेगी। आधार के रूप में परमात्मा का आश्रय सबसे उचित आश्रय है।


प्रश्न 6. इस श्लोक में ‘दैव’ की भूमिका को कर्म की सफलता के संदर्भ में स्पष्ट करो।

उत्तर- गीता के गोविंद श्रीकृष्ण ने सफलता का पाँचवाँ कारण ‘दैव’ को माना है। दैव अर्थात् भाग्य। भाग्य के विषय में दो बातें स्मरण रखने वाली हैं। एक तो यह कि हमारे ही पिछले कर्म-संस्कार हमारा अब का भाग्य बनते हैं। भाग्य को जीवन की कमजोरी के रूप में न माना जाए। हम यह सोचकर न बैठ जाएँ कि भाग्य में होगा तो यह काम हो जाएगा। इससे जीवन में प्रमाद बढ़ेगा। किसी कार्य में सफलता न मिलने पर यह सोचकर निष्क्रिय न हो जाना कि मेरा भाग्य अच्छा नहीं था। पूर्व जन्म के संस्कार अथवा प्रारब्ध के कारण यदि ऐसा हुआ भी है तो पहले के चार कारणों पर पूरा ध्यान देना चाहिए। अच्छे आधार और साधन के साथ कार्य-कुशलता से प्रयत्न करना चाहिए। पहले से ही मन बना लें कि कार्य के आधार, साधन या कार्य-कुशलता में कहीं कमी है, तो उसे पूरा करना है। इस सोच के साथ यदि हम कार्य करते हैं तो हमें सफलता अवश्य मिलेगी।


आपकी समझ –


प्रश्न 1. सफल होने के लिए कौन-से बिंदुओं पर ध्यान देना आवश्यक है?

उत्तर – जीवन में पाँच बिंदुओं की चर्चा की गई है जिन्हें अधिष्ठान, कर्त्ता, करण, चेष्टा और दैव के नाम से सम्बोधित किया गया है। इनमें अधिष्ठान से अभिप्राय सफलता के आधार से है। हम जिस काम को करने जा रहे हैं वह काम कैसा है? उस काम का लक्ष्य क्या है? उसका आधार कैसा है? यदि इस पर हम विचार करके काम करेंगे तो हमें सफलता मिलेगी। दूसरा है कर्त्ता। लक्ष्य को पाने वाला व्यक्ति कैसा है, उसके विचार कैसे हैं, उसकी नीति कैसी है? उस पर भी सफलता निर्भर करती है। तीसरा बिंदु है करण। करण साधन को कहते हैं। हम अपने उस लक्ष्य को पाने के लिए कैसे साधन का प्रयोग कर रहे हैं। हमारा साधन न्याय-संगत, धर्म-संगत और तर्क-संगत है कि नहीं इस पर भी हमारी सफलता निर्भर करती है। चौथा बिंदु है- चेष्टा। लक्ष्य को पाने के लिए हमारी कोशिश, हमारा प्रयास कैसा है। अंतिम बिन्दु दैव है अर्थात् भाग्य। कई लोग यह मानकर निष्क्रिय हो जाते हैं कि मेरे भाग्य में तो ऐसा है ही नहीं। इसलिए वे काम करना बंद कर देते हैं, परंतु ऐसा नहीं है। दैव को छोड़कर यदि हमारे चारों बिंदु सही रास्ते पर हैं तो हमें सफलता मिलने में संदेह नहीं है।


प्रश्न 2. आप अपनी मातृभूमि की सेवा किस तरह से करेंगे?

उत्तर- मातृभूमि की सेवा सबसे महान कार्य है। मैं एक विद्यार्थी होने के साथ-साथ इस देश का नागरिक भी हूँ। इसलिए इस देश के प्रति मेरा कर्त्तव्य बनता है कि मैं अपनी पढ़ाई के साथ-साथ अपनी मातृभूमि की सेवा के लिए भी कुछ काम करूँ। मैं पौधारोपण करके, वृक्षारोपण करके, अपने आसपास या नगर के सार्वजनिक स्थलों की साफ-सफाई करके, वृद्धों एवं जरूरतमन्दों की सेवा करके मातृभूमि की सेवा कर सकता हूँ। इसके साथ ही हमारे जो भी राष्ट्रीय पर्व हैं उनमें बढ़-चढ़कर अपनी भागीदारी तथा अपने देश के सैनिकों के प्रति आदर और सम्मान की भावना को व्यक्त करके अपनी मातृभूमि की सेवा कर सकता हूँ।