संकट में बुद्धिमानी Class 10 नैतिक शिक्षा (मध्यमा ) Chapter 9 Explain – HBSE Solution

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संकट में बुद्धिमानी Class 10 Naitik Siksha Chapter 9 Explain


एक वन में वट वृक्ष की जड़ में सौ दरवाजों का बिल बनाकर पलित नाम का एक बुद्धिमान चूहा रहता था। उसी वृक्ष की शाखा पर लोमश नाम का एक बिलाव भी रहता था। एक बार एक चाण्डाल ने आकर उस वन में डेरा डाल दिया। सूर्यास्त होने पर वह अपना जाल फैला देता था और उसकी ताँत की डोरियों को यथास्थान लगाकर मौज से अपने झोंपड़े में सो जाता था। रात में अनेक जीव उस जाल में फँस जाते थे, जिन्हें वह सवेरे पकड़ लेता था। बिलाव यद्यपि बहुत सावधान रहता था तो भी एक दिन उसके जाल में फँस ही गया। यह देखकर पलित चूहा निर्भय होकर वन में आहार खोजने लगा। इतने ही में उसकी दृष्टि चाण्डाल के डाले हुए (फँसाने के लिए) माँस-खण्डों पर पड़ी। वह जाल पर चढ़कर उन्हें खाने लगा। इतने में ही उसने देखा कि हरिण नाम का नेवला चूहे को पकड़ने के लिए जीभ लपलपा रहा था। अब चूहे ने जो ऊपर की ओर वृक्ष पर भागने की सोची तो उसने वट की शाखा पर रहने वाले अपने घोर शत्रु चन्द्रक नामक उल्लू को देखा। इस प्रकार इन शत्रुओं के बीच में पड़कर वह डर गया और चिन्ता में डूब गया।

इसी समय उसे एक विचार सूझ गया। उसने देखा कि बिलाव संकट में पड़ा है, इसलिए वह इसकी रक्षा कर सकेगा। अतः उसने उसकी शरण में जाने की सोची। उसने बिलाव से कहा “भैया! अभी जीवित हो न? देखो। डरो मत। यदि तुम मुझे मारना न चाहो तो मैं तुम्हारा उद्धार कर सकता हूँ। मैंने खूब विचार कर अपने और तुम्हारे उद्धार के लिए उपाय सोचा है। उससे हम दोनों का हित हो सकता है। देखो, ये नेवला और उल्लू मेरी घात में बैठे हुए हैं। इन्होंने अभी तक मुझ पर आक्रमण नहीं किया है, इसलिए बचा हुआ हूँ। अब तुम मेरी रक्षा करो और तुम जिस जाल को काटने में असमर्थ हो, मैं उसे काटकर तुम्हारी रक्षा कर लूँगा।’

बिलाव भी बुद्धिमान था। उसने कहा- ‘सौम्य ! तुम्हारी बातों से बड़ी प्रसन्नता हुई है। इस समय मेरे प्राण संकट में हैं। मैं तुम्हारी शरण में हूँ। तुम जैसा भी कहोगे, मैं वैसा ही करूँगा।’

चूहा बोला- ‘तो मैं तुम्हारी गोद में नीचे छिप जाना चाहता हूँ, क्योंकि नेवले से मुझे बड़ा भय हो रहा है। तुम मेरी रक्षा करना। इसके बाद मैं तुम्हारा जाल काट दूंगा। यह बात मैं सत्य की शपथ लेकर कहता हूँ।’

लोमश बोला- ‘तुम तुरन्त आ जाओ। भगवान तुम्हारा मंगल करें। तुम तो मेरे प्राणों के समान प्रिय सखा हो। इस संकट से छूट जाने पर मैं अपने बन्धुबान्धवों के साथ तुम्हारा प्रिय तथा हितकारी कार्य करता रहूँगा।”

अब चूहा आनन्द से उसकी गोद में जा बैठा। बिलाव ने भी उसे ऐसा निश्चिन्त बना दिया कि वह माता-पिता की गोद के समान उसकी छाती से लगकर सो गया। जब नेवले और उल्लू ने उनकी ऐसी गहरी मित्रता देखी तो वे निराश होकर अपने-अपने स्थान को चले गए। चूहा देश काल की गति को पहचानता था, इसलिए चाण्डाल की प्रतीक्षा करते हुए धीरे-धीरे जाल काटने लगा। बिलाव बन्धन के कारण ऊब गया था। उसने उससे जल्दी-जल्दी जाल काटने की प्रार्थना की।

पलित ने कहा, ‘भैया! घबराओ मत। मैं कभी नहीं चुकुंगा, असमय में काम करने से कर्त्ता को हानि ही होती है। यदि मैंने पहले ही तुम्हें छुड़ा दिया तो मुझे तुमसे भय हो सकता है। इसलिए जिस समय मैं देखूंगा कि चाण्डाल हथियार लिए हुए इधर आ रहा है, उसी समय मैं तुम्हारे बन्धन काट डालूँगा। उस समय तुम्हें वृक्ष पर चढ़ना ही सूझेगा और मैं तुरन्त अपन बिल में घुस जाऊँगा।’

बिलाव ने कहा- ‘भाई! पहले के मेरे अपराधों को भूल जाओ। अब तुम फुर्ती के साथ मेरा बन्धन काट दो। देखो, मैंने तुम्हें आपत्ति में देखकर तुरन्त बचा लिया। अब तुम अपना मनोमालिन्य दूर कर दो।”

चूहे ने कहा- ‘मित्र! जिस मित्र से भय की सम्भावना हो, उसका काम इस प्रकार करना चाहिए, जैसे बाजीगर सर्प के साथ उसके मुँह से हाथ बचाकर खेलता है। जो व्यक्ति बलवान के साथ सन्धि करके अपनी रक्षा का ध्यान नहीं रखता, उसका वह मेल अपथ्य भोजन के समान कैसे हितकर होगा? मैंने बहुत-से तन्तुओं को काट डाला है, अब मुख्यतः एक ही डोरी काटनी है जब चाण्डाल आएगा, तब भय के कारण तुम्हें भागने की ही सूझेगी। उसी समय में तुरन्त डोरी को काट डालूँगा। तुम बिलकुल न घराओ।’

इसी तरह बातें करते वह रात बीत गई। लोमश का भय बराबर बढ़ता गया। प्रातःकाल परिधि नामक चाण्डाल हाथ में शस्त्र लिए आता दिखा। वह साक्षात् यमदूत के समान जान पड़ता था। ऐसे में बिलाव भय से व्याकुल हो गया। अब चूहे ने तुरन्त जाल काट दिया। बिलाव झट पेड़ पर चढ़ गया और चूहा भी बिल में घुस गया। चाण्डाल भी जाल को कटा देख निराश होकर वापस चला गया।

अब लोमश ने चूहे से कहा- ‘भैया! तुम मुझसे कोई बात किए बिना ही बिल में क्यों घुस गए? अब तो मैं तुम्हारा मित्र हो गया हूँ और अपने जीवन की शपथ करके कहता हूँ, अब मेरे बन्धुबान्धव भी तुम्हारी इस प्रकार सेवा करेंगे, जैसे शिष्य लोग गुरु की सेवा करते हैं। तुम मेरे शरीर, मेरे घर और मेरी सारी सम्पत्ति के स्वामी हो। आज से तुम मेरा मन्त्रित्व स्वीकार करो और पिता की तरह मुझे शिक्षा दो । बुद्धि में तो तुम साक्षात् शुक्राचार्य ही हो। अपने मन्त्र बल से जीवनदान देकर तुमने मुझे निःशुल्क खरीद लिया है। अब में सर्वथा तुम्हारे अधीन हूँ।’

बिलाव की चिकनी-चुपड़ी बातें सुनकर परम नीतिज्ञ चूहा बोला- ‘भाई साहब! मित्रता तभी तक निमती है, जब तक स्वार्थ से विरोध नहीं आता। मित्र वहीं बन सकता है, जो कुछ काम आ सके तथा जिस के मरने से कुछ हानि हो, तभी तक मित्रता चलती है। न मित्रता कोई स्थायी वस्तु है और न शत्रुता ही। स्वार्थ की अनुकूलता प्रतिकूलता से ही मित्र तथा शत्रु बनते रहते हैं। समय के फेर से कभी मित्र ही शत्रु तथा कभी शत्रु ही मित्र बन जाता है। हमारी प्रीति भी एक विशेष कारण से हुई थी। अब जब वह कारण नष्ट हो गया तो प्रीति भी नहीं रही। मुझे खा जाने के सिवाय अब मुझसे तुम्हारा कोई दूसरा प्रयोजन सिद्ध होने वाला नहीं। मैं दुर्बल तुम बलवान, मैं भक्ष्य तथा तुम भक्षक ठहरे। अतएव तुम मुझसे भूख बुझाना चाहते हो भला, जब तुम्हारे प्रिय पुत्र और स्त्री मुझे तुम्हारे पास बैठा देखेंगे तो मुझे चट करने में वे क्यों चूकेंगे? इसलिए मैं तुम्हारे साथ नहीं रह सकता। यदि मेरे किए हुए उपकार का तुम्हें ध्यान रहे तो यदि कभी मैं चूक से तुम्हारे सम्मुख आ जाऊँ तो मुझे चट न कर जाना।

पलित ने जब इस प्रकार खरी-खरी सुनाई तो बिलाव ने लज्जित होकर कहा- भाई! मैं सत्य की शपथ खाकर कहता हूँ, तुम मेरे परमप्रिय हो और मैं तुमसे द्रोह नहीं कर सकता। तुम्हारे कहने से मैं अपने बन्धु-बान्धवों के साथ प्राण तक त्याग सकता हूँ।’

इस प्रकार बिलाव ने जब चूहे की और भी प्रशंसा की, तब चूहे ने कहा- ‘आप वास्तव में बड़े साधु हैं। आप पर मैं पूर्ण प्रसन्न हूँ, तथापि मैं आप में विश्वास नहीं कर सकता। इसलिए लोमश जी ! मुझे आपसे सर्वथा सावधान रहना चाहिए और आपको भी जन्म शत्रु चाण्डाल से बचना चाहिए।”

चाण्डाल का नाम सुनकर बिलाव भाग गया और चूहा भी बिल में चला गया। दुर्बल और अकेला होने पर भी अपने बुद्धिबल से पलित कई शत्रुओं से बच गया।