दुविधा से ऊपर उठो Class 12 नैतिक शिक्षा (उत्तरा) Chapter 2 Explain – HBSE आदर्श जीवन मूल्य Book Solution

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दुविधा से ऊपर उठो Class 12 Naitik Siksha Chapter 2 Explain


कायरता छाई मैं मोहित हुआ, साधन मेरे लिए अब श्रेष्ठ क्या?
प्रभो! आप ही की शरण में पड़ा, दो शिक्षा मुझे शिष्य हूँ आपका ॥

प्यारे बच्चो! शक्ति, साहस आदि गुणों के लिए प्रायः ‘दम’ शब्द का प्रयोग किया जाता है। आपने लोगों को कहते सुना होगा कि ‘उस पहलवान में दम है’ या ‘फलां आदमी की बातों में कोई दम नहीं है”। परंतु संस्कृत भाषा में ‘दमन’ शब्द का अर्थ है- रोकना, नियन्त्रण में रखना। अतः ‘दम’ शब्द का सीधा-सीधा अर्थ है- अपनी इन्द्रियों का निग्रह, इन्द्रियों पर नियन्त्रण या इन्द्रिय संयम। आप सोच सकते हैं कि अभी तो आप सभी विद्यार्थी अपनी बाल्यावस्था, किशोरवस्था अथवा यौवन की दहलीज पर हैं। हमें अभी से इन्द्रिय संयम के इस लक्षण की क्या आवश्यकता है? ऐसा नहीं है। इस पाठ से पहले भी किसी अन्य पाठ में यह संकेत किया गया है कि ‘गीता’ का प्रत्येक भाव और संदेश सबके लिए है, हर मानव के लिए है। यह हर क्षेत्र की, हर समय के लिए व्यावहारिक प्रेरणा है। ‘इन्द्रिय संयम’ का अर्थ यह नहीं है कि हम अपनी इन्द्रियों का उपयोग ही न करें। कहने का अभिप्राय यह है कि हम अपनी इन्द्रियों के निरर्थक उपयोग से सावधान रहें।

प्यारे वत्स। हमें मानव के रूप में जीवन मिला है। मनुष्य-शरीर का एक-एक अंग अनमोल है। विश्व के किसी भी बाजार में मानव-शरीर के अंगों का कोई विकल्प नहीं है। एक बार एक निराश युवक किसी विचारवान महापुरुष के पास गया। वह जीवन से एकदम निराश था। वहाँ वह युवक कहने लगा- “इस जीवन को रखकर क्या लाभ है जबकि मेरे पास कोई साधन-सुविधा नहीं?” उस विचारक ने कहा- “अपनी आँखें निकाल कर मुझे दे दो, इनके बदले में मैं तुम्हें दो लाख रुपये दिलवाता हूँ।” युवक ने सोचा ‘यह कैसे हो सकता है, आँखों के बिना जीवन? सोच कर भी डर रहा हूँ।’ उसे इस प्रकार सोच में डूबते देख उस विचारवान महापुरुष ने उससे पुनः कहा- “अपने हाथ मुझे दो, मैं तुम्हें पाँच लाख रुपये दिलवाता हूँ।’ उस महापुरुष ने उसे निरुत्तर देखकर फिर कहा- “अपने दोनों पाँव दे दो, दस लाख रुपये दिलवाता हूँ।” उस महापुरुष के ऐसे वचन सुनकर परेशान हो चुके युवक ने कहा- “ये कैसी बातें कर रहे हैं आप!” विचारक मुस्कुराए और कहने लगे- “भाई! मुझे आपके आँख, हाथ, पाँव आदि अंगों का क्या करना है? मैं तो. यह समझाना चाह रहा हूँ कि जब शरीर का एक-एक अंग इतना अनमोल है, लाखों रुपये भी उसके समक्ष आपको तुच्छ लग रहे हैं तब इनका सदुपयोग करने का संकल्प करो, निराशा दूर करो, सन्मार्ग पर आगे बढ़ो, भगवान् आपकी सहायता अवश्य करेंगे।” उस महापुरुष के ये वचन सुनकर युवक ने निराशा को त्याग दिया और मन में एक नया संकल्प, नया जोश भर लिया।

प्यारे बच्चो! आपने महात्मा गांधी के तीन बन्दरों के बारे में अवश्य सुना होगा। उनके तीन बन्दर यही तो संकेत करते हैं- बुरा मत देखो, बुरा मत बोलो, बुरा मत सुनो। ये जो हमारे इन्द्रियाँ द्वार हैं, इन्हीं के द्वारा बुराई हमारे अन्दर प्रवेश करती है। इसलिए ‘गीता’ के दूसरे अध्याय में भगवान् श्रीकृष्ण ने कछुए का उदाहरण दिया है कि जैसे भय की आहट पाते ही कछुआ अपने अंग समेट लेता है, वैसे ही जहाँ से बुराई की आहट सुनाई दे, वहाँ से आँखें मूँद लो अर्थात् अपनी इन्द्रियों को उस बुराई के सम्पर्क में न रहने दो। जब आपको यह लगे कि यहाँ बोलने से क्रोध भड़केगा और वातावरण में दुर्भावना-कलह बढ़ेगी तो वहाँ तुरंत मौन हो जाओ आदि-आदि।

प्यारे बच्चो! यही बात हमारी जिहवा अर्थात् जीभ पर भी लागू होती है। जो खाना हमारे स्वास्थ्य को बिगड़ता है अथवा खाने के स्वाद के आगे प्रश्न चिह्न लगाता है, वहाँ संयम बरतो और ऐसे भोजन से दूर रहो। आजकल बहुत अधिक फास्ट फूड आदि का प्रचलन ऐसे प्रश्न खड़े भी कर रहा है। हम समाज में देख रहे हैं कि छोटी अवस्था से ही बच्चों के स्वास्थ्य बिगड़ते रहे हैं। इस समस्या का भी समाधान यही है खाने के लिए न जिएँ, अपितु जीने के लिए अच्छा सात्त्विक स्वास्थ्यवर्धक भोजन करें। इसे ही इन्द्रिय संयम कहा जाता है। प्रिय वत्स! आपको यह जानकर हैरानी होगी कि विद्यार्थी जीवन काल में भी संयम आवश्यक है। पढ़ाई के समय तो इस लक्षण की बहुत अधिक आवश्यकता है। आपको हमेशा यह ध्यान रखना होगा कि आपके पाँव सन्मार्ग की ओर आगे बढ़ें, कुसंग की ओर नहीं। एक विद्यार्थी के हाथों की अँगुलियाँ हर समय मोबाइल पर न हों और न ही आँखें वहीं टिकी हुई होनी चाहिएँ। यदि पढ़ाई के समय आपका ध्यान मोबाइल या इधर-उधर की कुसंगति में लगा रहा तो पढ़ाई में एकाग्रता कभी नहीं बनेगी। ‘गीता’ की व्यावहारिक सोच को पहचानो और आगे बढ़ाओ। तभी आप जीवन में सफलताएँ प्राप्त कर सकते हो।