सन्तुलित जीवन Class 12 नैतिक शिक्षा (उत्तरा) Chapter 3 Explain – HBSE आदर्श जीवन मूल्य Book Solution

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HBSE Class 12 Naitik Siksha Chapter 3 सन्तुलित जीवन Explain for Haryana Board of नैतिक शिक्षा Class 12th Book Solution.

सन्तुलित जीवन Class 12 Naitik Siksha Chapter 3 Explain


कर त्याग मोह का तू जम योग में, सफलता या असफलता कुछ भी मिले।
मन को रख दोनों में ही समान, हे अर्जुन ! इसी समता का योग नाम ॥

प्रिय बच्चो! आपने ‘योग’ शब्द अवश्य ही पढ़ा या सुना होगा। आपने यह भी सुना होगा कि मानव जीवन में योग का बहुत महत्त्व है। आइए, अब हम ‘योग’ के बारे में जानने का प्रयास करें? ‘श्रीमद्भगवद्‌गीता’ के अनुसार योग कोई ऐसी अवस्था नहीं है जो किसी एकान्त साधना से ही प्राप्त होगा अथवा यह योग केवल साधु-संन्यासियों या योगियों को ही सुलभ होगा। ‘गीता’ का योग सबकी पहुँच में है, सबके लिए सुलभ है, बहुत व्यावहारिक है। ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ में ‘समत्वं योग उच्यते’ अर्थात् ‘मन की समता’ को योग कहा जाता है।

प्रिय वत्स। ‘श्रीमद्भगवद्‌गीता’ में जो उपदेश दिया गया है, वह उपदेश केवल अर्जुन के लिए नहीं है बल्कि प्रत्येक मनुष्य के लिए है। ‘श्रीमद्भगवद्‌गीता’ ने सफलता असफलता, अनुकूलता-प्रतिकूलता आदि में सम रहने अर्थात् समान भाव से रहने की प्रेरणा दी। यद्यपि यह पढ़ कर आप में से कुछ विद्यार्थियों को ऐसा लग सकता है कि आज के समय में ऐसा कैसे और कहाँ सम्भव है। ध्यान रहे, उतावलेपन में ही ऐसा मान कर न बैठ जाएँ। आप इस पर धैर्य से विचार करें। आपको लगेगा कि जीवन का सत्य यही है। आगे बढ़ने और लक्ष्य साधने का आधार भी यही है। मन में एक बार ऐसा भाव बन जाने पर जीवन में जो निखार एवं दृढ़ता आती है, वह वास्तव में अनुभव की जा सकती है और करनी भी चाहिए।

प्यारे बच्चो! प्रत्येक मनुष्य जीवन में सफल होना चाहता है क्योंकि सफलता निःसन्देह सबको अच्छी लगती है। लेकिन हमें यह भी सोचना चाहिए कि यदि हमें अपेक्षित सफलता नहीं भी मिली तो हम क्या करें? क्या हम निराश होकर बैठ जाएँ? क्या मन को गिरा दें? क्या असफलता को ही मन में गहरा उतार कर आगे का लक्ष्य वहीं समाप्त कर दें? निराश होते-होते इतने अवसाद या तनाव में चले जाएँ कि आगे कुछ करने का मन ही न बने और मन कुछ घातक या विपरीत और विनाशकारी निर्णयों की ओर बढ़ने लगें? सोचो, क्या किसी भी दृष्टि से यह उचित होगा? निश्चय ही यह उचित नहीं होगा। ऐसी निराशाजनक सोच रखना अपने अनमोल जीवन और यौवन के साथ बहुत बड़ा अन्याय होगा।

ऐ भारत के भावी-निर्माताओ! याद रखो। किसी एक असफलता से ही जीवन में आगे बढ़ने के सारे मार्ग बन्द नहीं हो जाते हैं। असफल होने पर भी मन में धैर्य रखो, सहनशील बनो, उत्साह को मत छोड़ो, आत्मविश्वास को मत तोड़ो। हर असफलता में भी कहीं-न-कहीं सफलता का मन्त्र छिपा होता है। उसे पहचानकर फिर से उत्साहपूर्वक आगे बढ़ने का दृढ़ निश्चय करो। सफलता उन्हीं पुरुषों का वरण करती है, जो कभी हिम्मत नहीं हारते। इस संसार में ऐसे हजारों उदाहरण देखने को मिलते हैं जब बार-बार असफलता होने पर भी लोगों ने पुरुषार्थ करना नहीं छोड़ा और अन्ततः जीवन में सफलता प्राप्त की।

प्यारे बच्चो! यहाँ हम एक ऐसे ही उदाहरण को लेते हैं। ‘राजा ब्रूस और मकड़ी’ नामक कविता आप सभी ने बचपन में पढ़ी होगी। राजा ब्रूस एक युद्ध में शत्रु से हार कर निराशा में डूबा एक गुफा में अकेला बैठा था। उसके मन में हताशा बढ़ती जा रही थी। तभी उसने देखा कि सामने एक मकड़ी दीवार के ऊपर चढ़ने का प्रयास करती परंतु फिर गिर जाती। इस प्रकार वह मकड़ी सोलह बार गिरी, फिर भी उसने मन में हार नहीं मानी। उसने प्रयास करना नहीं छोड़ा और अपनी हिम्मत नहीं छोड़ी। आखिर 17वीं बार के प्रयास में वह मकड़ी दीवार पर चढ़ ही गई। राजा ब्रूस उसके ये प्रयास देखकर चौंके और उठ खड़े हुए। वे मन में यह सोचने लगे कि यदि यह मकड़ी सोलह बार असफलता से नहीं हारी और आखिरकार सफल हो गई परंतु मैं तो एक बार की पराजय में ही मन को गिरा बैठा। उसने अपना उत्साह जगाया और युद्ध करके फिर से अपना राज्य प्राप्त कर लिया।

प्यारे बच्चो ! सभी के जीवन में उतार-चढ़ाव, सफलता असफलता, अनुकूल परिस्थिति-प्रतिकूल परिस्थिति आदि आती-जाती रहती हैं। यदि जीवन में सफल होना है तो अनुकूलता-प्रतिकूलता में भी सम रहने का स्वभाव बनाओ। अनुकूलताओं एवं प्रतिकूलताओं के इतने आदी या अभ्यस्त न हो जाओ अथवा उन्हें लेकर इतना अहम् न जगा बैठो कि तनिक-सी प्रतिकूलता भी विचलित कर दे। इस संसार में महान् वही व्यक्ति कहलाता है जो दोनों में संतुलन बनाकर जीवन रूपी यात्रा में आगे बढ़ता रहता है। आओ, हम भी ऐसे ही बनें। ‘गीता’ पढ़ें और जीवन में आगे बढ़ें।