अच्छाई पर दृढ़ रहो Class 9 नैतिक शिक्षा (मध्यमा ) Chapter 4 Explain – HBSE Solution

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HBSE Class 9 Naitik Siksha Chapter 4 अच्छाई पर दृढ़ रहो Explain for Haryana Board of नैतिक शिक्षा Class 9th Book Solution.

अच्छाई पर दृढ़ रहो  Class 9 Naitik Siksha Chapter 4 Explain


ब्रह्मण्याधाय कर्माणि, सङ्गं त्यक्त्वा करोति यः ।
लिप्यते न स पापेन, पद्मपत्रमिवाम्भसा ।।  – गीता अध्याय 5 श्लोक 10

अर्थात् जो भक्तियोगी अपने सम्पूर्ण कर्मों को परमात्मा में अर्पण करके आसक्ति का सर्वथा त्याग करता है, वह कर्म करते हुए भी कर्म फलों से उसी प्रकार नहीं बंधता जैसे कमल का पत्ता जल से उत्पन्न होकर और जल में रहकर भी जल से निर्लिप्त रहता है।

भगवद्‌गीता की एक मुख्य विशेषता दृष्टांत के द्वारा सिद्धांत को स्पष्ट करना है। गीता में ऐसे अनेक भाव हैं, जिन्हें समझने में कुछ कठिनाई महसूस हुई या गीता उपदेष्टा भगवान् श्रीकृष्ण को ऐसा लगा कि इस विषय को सहजता व सरलता से अच्छी और व्यापक प्रेरणा बनाए जाने की आवश्यकता है, वहाँ कोई सरल व्यावहारिक दृष्टांत साथ जोड़ दिया। यहाँ इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए कमल के पत्ते का उदाहरण दिया गया है।

जैसे कीचड़ में रहकर भी कमल का पत्ता कीचड़ से निर्लिप्त होता है, कीचड़ या पानी का प्रभाव अपने ऊपर नहीं पड़ने देता वैसे ही कर्म करते हुए हमारी भी ऐसी ही भाव दृढ़ता होनी चाहिए। जहाँ भी रहें या जाएँ हमारी महानता इसी में है कि हम अपनी अच्छाई का प्रकाश फैलाएँ, अपनी अच्छाई की ओर दूसरों का ध्यान आकर्षित करें, न कि किसी की बुराई का प्रभाव अपने ऊपर पड़ने दें। गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपनी अमर कृति ‘रामचरितमानस’ में बहुत सुंदर उदाहरण दिया है-

“विधिवस सज्जन कुसंगति परेहि।
पर ही फणि मणि समनिज गुण अनुसरहि ॥”

यदि सज्जन पुरुषों को किसी कारणवश कहीं ऐसी परिस्थिति या ऐसे वातावरण में जाना या कुछ समय के लिए रहना पड़ जाता है, तो वे वैसे ही अपने सद्‌गुणों तथा सद्व्यवहारों की चमक वहाँ छोड़ देते हैं जैसे साँप के मुख में पड़ी हुई मणि साँप के विष का प्रभाव अपने ऊपर नहीं पड़ने देती, बल्कि अपने ही प्रकाश की चमक छोड़ती है। आजकल हम विशेष रूप से पठित समाज की ओर से यह सुनने लगे हैं कि हम तो अच्छा बनकर रहना चाहते हैं, लेकिन क्या करें, जब चारों ओर का वातावरण ही बिगड़ा हुआ है। बिगड़े हुए वातावरण में हम कहाँ तक और कब तक अपने को सुरक्षित रखें? जब भी मन में इस तरह की दुविधा आने लगे या कोई अपनी विकृति, बुरे व्यवहार या स्वभाव का प्रभाव हमारे ऊपर डालने का प्रयास करने लगे, तो उसी समय गीता के ‘पद्मपत्रमिवाम्भसा’ इस वाक्य को सामने रख लेना चाहिए। इसका अर्थ यह है कि जिस प्रकार कमल का पत्ता अपने आसपास निहित जल से अस्पृश्य रहता है उसी प्रकार व्यक्ति को बिना किसी आसक्ति या मोह से रहित होकर कर्म करते रहना चाहिए।

आदमी को दुनिया में इस तरह से रहना चाहिए जिस तरह तालाब के पानी में कमल रहता है। हम जहाँ भी जाएँ, जहाँ भी रहें, हमारी महानता इसी में है कि हम अपनी अच्छाई का प्रभाव दूसरों पर डालें। किसी की बुराई को अपने ऊपर हावी न होने दें। पढ़ाई के दिनों में प्रायः हमें ऐसा देखने या सुनने को मिल जाता है कि नशे या किसी बुरी आदत में फंसा हुआ युवक अपने साथ अनेक युवकों को अपने प्रभाव में लेने का प्रयास करता है। हमें ऐसी स्थिति से सावधान रहना चाहिए। अच्छाई तो इसमें है कि हम अपने दृढ़ निश्चय और आत्मविश्वास से उस युवक को नशे से मुक्त रहने की प्रेरणा दें। यदि हम उसे ऐसी प्रेरणा न दे सकें तो कम-से-कम अपने ऊपर उसका प्रभाव न पड़ने दें। इसके साथ ही दूसरे लोगों को भी इससे सतर्क और सावधान रहने की प्रेरणा देते रहें।

लंका में रहते हुए भी विभीषण अपनी सच्चाई और अच्छाई पर डटे रहे। महात्मा विदुर ने हस्तिनापुर में रहते हुए भी अपने ऊपर कौरवों का दुष्प्रभाव नहीं पड़ने दिया। वे जब भी बोले, सत्य व निष्ठा की ही बात बोले। इसलिए आज भी उनका सम्मान सुरक्षित है।