छत्रपति शिवाजी महाराज Class 9 नैतिक शिक्षा (मध्यमा ) Chapter 7 Explain – HBSE Solution

Class 9 Hindi New Naitik Siksha (आदर्श जीवन मूल्य (मध्यमा ) BSEH Solution for Chapter 7 छत्रपति शिवाजी महाराज  Explain for Haryana board. CCL Chapter Provide Class 1th to 16th all Subjects Solution With Notes, Question Answer, Summary and Important Questions. Class 9 Hindi mcq, summary, Important Question Answer, Textual Question Answer, Word meaning, Vyakhya are available of नैतिक शिक्षा Book for HBSE.

Also Read – HBSE Class 9 नैतिक शिक्षा (मध्यमा ) Solution

Also Read – HBSE Class 9 नैतिक शिक्षा (मध्यमा ) Solution in Videos

HBSE Class 9 Naitik Siksha Chapter 7 छत्रपति शिवाजी महाराज  Explain for Haryana Board of नैतिक शिक्षा Class 9th Book Solution.

छत्रपति शिवाजी महाराज  Class 9 Naitik Siksha Chapter 7 Explain


भारत भूमि वीर-जननी कहलाती है। यहाँ समय-समय पर अनेक महापुरुषों व वीरों ने जन्म लिया। ऐसे ही वीरों में एक श्रेष्ठ वीर थे-शिवाजी महाराष्ट्र के घर-घर में माताएँ अपने बालकों को उनकी वीरता की कहानियाँ सुनाया करती है। शिवाजी आदर्श मातृभा सपूत निर्भीक, वीर साहसी, शौर्यवान, सुशासक और राज्य निर्माता थे। इन्हीं गुणों के कारण उन्हें कवि भूषण ने शेर कहा-

इन्द्र जिमि जम्भ पर बाड़व सुअम्भ पर रावन सदम्भ पर रघुकुल राज है।
पौन बारिवाह पर सम्भु रतिनाह पर ज्यों सहसबाहु पर राम द्विजराज है।
दावा द्रुम दण्ड पर चीता मृगझुण्ड पर भूषन बितुण्ड पर जैसे मृगराज है।
तेज तम अंस पर कान्ह जिमि कंस पर त्यों म्लेच्छ बंस पर सेर सिवराज है।

भारतवर्ष के दक्षिण-पश्चिमी भाग में स्थित महाराष्ट्र प्रदेश में शिवाजी का जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम शाहजी भोंसले और माता का नाम जीजाबाई था। शाहजी दरबार में सेवारत थे। जीजाबाई महान देशभक्त और वीरांगना थीं। उन्होंने ही शिवाजी को शिवाजी बनाया था। जीजाबाई की माँ भवानी पर बड़ी श्रद्धा थी। इसी कारण शिवाजी में भी माँ भवानी पर श्रद्धा उत्पन्न हुई। कहते हैं कि माँ भवानी ने प्रकट होकर शिवाजी को तलवार भेंट की थी।

शिवाजी के पिता शाहजी ने दूसरा विवाह कर लिया था। जीजाबाई को इससे बहुत दुख हुआ और वह शिवाजी को लेकर पूना के पास एक छोटी-सी जागीर में रहने लगी। अब जीजाबाई का जीवन संन्यासिनी के समान हो गया। उनका मन धर्म की ओर अधिक झुक गया, जिसका बालक शिवाजी पर बहुत प्रभाव पड़ा। माता पुत्र को रामायण और महाभारत की अनेक कथाएँ सुनाया करती थी।

शिवाजी की शिक्षा-दीक्षा दादा कोण्डदेव के द्वारा हुई। उन्होंने ही शिवाजी को अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा दी थी। शिवाजी ने बचपन से ही अपना काम स्वयं करना सीखा। इससे उनकी बुद्धि, कार्यकुशलता और सहनशीलता के आश्चर्यजनक सुयोग से विकसित हुई। इसी कारण उनके हृदय में स्वाधीनता का दृढ भाव भी जाग्रत हुआ।

शिवाजी बाल्यावस्था से ही बड़े वीर साहसी और निर्भीक थे। एक बार शाहजी बालक शिवाजी को बीजापुर के बादशाह के दरबार में ले गए। शाहजी ने बालक शिवाजी से कहा, “तुम बादशाह को झुककर सलाम करो।” पर शिवाजी ने न तो सलाम किया, न झुककर नम्रता प्रकट की। शाहजी ने जब डॉंट-फटकार की, तो शिवाजी ने उत्तर दिया, “आपको तो मालूम है कि मैं अपनी माता और भवानी माँ को छोड़कर किसी के सामने अपना मस्तक नहीं झुकाता।”

शिवाजी का चरित्र प्रबल और उज्ज्वल था। वे सब धर्मो का आदर करते थे। उन्होंने किसी मस्जिद को हानि नहीं पहुँचाई। जब कभी लड़ाई में मुस्लिम धर्मग्रन्थ कुरान की कोई प्रति उन्हें मिलती थी तो वे उसे आदर के साथ रखते थे और किसी मुसलमान को दान कर दिया करते थे। उनका धर्म सच्चा मानव-धर्म था।

शिवाजी महिलाओं के सम्मान का पूरा ध्यान रखते थे। जब कल्याण के किले पर शिवाजी का अधिकार हो गया, तो उनके एक सेनापति ने कल्याण के नवाब की बेगम को पकड़ लिया। बेगम बहुत खूबसूरत थी। सेनापति ने बेगम को शिवाजी के सामने उपस्थित किया। बेगम के हाथ में कुरान का पवित्र ग्रन्थ था। शिवाजी ने कुरान को तो चूम लिया और बेगम को देखकर कहा, “तुम सचमुच बड़ी खूबसूरत हो। काश! तुमने मुझे जन्म दिया तब मैं भी तुम्हारे समान खूबसूरत होता ।” शिवाजी ने बड़े आदर से कुरान और बेगम को नवाब के पास भेज दिया।

शिवाजी बड़े बुद्धिमान और दाँव-पेंच के कुशल खिलाड़ी थे। औरंगजेब ने मिलने के उद्देश्य से शिवाजी को आगरा बुलाया। जब वे आगरा गए तो औरंगजेब ने उन्हें बन्दी बना लिया। शिवाजी अपने के पुत्र साथ मिठाई के टोकरे में छिपकर कैद से बाहर निकल आए। औरंगजेब सिर पीटकर रह गया पर वह फिर शिवाजी को गिरफ्तार नहीं कर सका।

शिवाजी अपनी माँ के अनन्य भक्त थे। एक बार शिवाजी की माँ ने उन्हें अपने पास बुलाकर कहा, “शिवाजी, मेरे मन को शान्ति तब मिलेगी जब तू कोण्ढाना के दुर्ग पर अधिकार कर लेगा।”

कोण्ढाना के दुर्ग को जीतना बड़ा कठिन था, पर माँ की इच्छा थी। शिवाजी ने शीघ्र ही ताना जी को कोण्ढाना के दुर्ग पर आक्रमण करने का आदेश दिया। ताना जी ने दुर्ग पर अधिकार तो कर लिया, पर उन्हें अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ी। इस पर शिवाजी ने बड़े ही दुःख के साथ कहा, “गढ़ तो आया. पर सिंह चला गया।”

उसी समय से कोण्ढाना के दुर्ग का नाम सिंहगढ़ पड़ गया।

शिवाजी अपने गुरु स्वामी रामदास के बड़े भक्त थे। उन्हें राजपाट का बिल्कुल मोह न था। एक बार स्वामी रामदास ने सतारा के किले में ‘जय जय श्री रघुवीर समर्थ का जयघोष कर भिक्षा माँगी तो शिवाजी ने एक कागज़ पर अपना सारा राज्य स्वामीजी के नाम लिखकर, उस कागज़ को उनकी झोली में डाल दिया। स्वामी रामदास उस कागज़ को पढ़कर हँस पड़े। उन्होंने हँसते हुए कहा, “शिवा, ठीक है, यह राज्य मेरा है। मैं इसे स्वीकार करता हूँ पर तुम्हें आदेश देता हूँ कि इसके संचालन का दायित्व तुम्हारा है।”

शिवाजी ने अनेक लड़ाइयों में विजय प्राप्त की। उन्होंने मुगलों को महाराष्ट्र से निकालकर स्वतन्त्र राज्य की स्थापना की। वास्तव में भारत के नक्शे में महाराष्ट्र ही एक ऐसा राज्य था, जो औरंगजेब के शासन काल में स्वतन्त्र हो गया था। इसका श्रेय शिवाजी को ही जाता है।

शिवाजी 6 जून, 1674 को हिन्दू रीति के अनुसार राजगद्दी पर बैठे। उन्होंने छत्र धारण किया और हाथी पर सवार होकर अपने दल-बल के साथ रायगढ़ के रास्ते से जुलूस निकाला। आगे दो हाथियों के ऊपर दो झण्डे थे, जिनमें एक भगवा झण्डा था, जो श्री गुरु रामदास के गेरुए वस्त्र का टुकड़ा था।

लगभग छह वर्ष पश्चात् 3 अप्रैल, 1680 को शिवाजी का स्वर्गवास हो गया। सारा महाराष्ट्र वज्राहत हो गया। उनकी याद हमारे हृदय में सदा अमर रहेगी।