दुविधा से ऊपर उठो Class 12 नैतिक शिक्षा (उत्तरा) Chapter 2 Question Answer – HBSE आदर्श जीवन मूल्य Book Solution

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दुविधा से ऊपर उठो Class 12 Naitik Siksha Chapter 2 Question Answer


पाठ से – 


प्रश्न 1 – इन्द्रिय-निग्रह (नियंत्रण) से विद्यार्थी जीवन में क्या-क्या लाभ हैं?

उत्तर – इन्द्रिय-निग्रह (नियंत्रण) से विद्यार्थी जीवन में निम्नलिखित लाभ हैं-
(i) इन्द्रिय-निग्रह से विद्यार्थी कुसंगति से बचे रह सकते हैं।
(ii) इन्द्रिय-निग्रह से विद्यार्थियों में बुराइयाँ उत्पन्न नहीं हो सकती हैं।
(iii) इन्द्रिय-निग्रह से ही विद्यार्थी अपने शरीर को स्वस्थ व मजबूत बना सकते हैं।
(iv) इन्द्रिय-निग्रह से विद्यार्थी का मनोबल बढ़ता है तथा मन में शान्ति, स्थिरता व एकाग्रता आती है।


प्रश्न 2: मानव-जीवन को अनमोल बनाने हेतु महापुरुषों ने क्या-क्या उदाहरण दिए हैं?

उत्तर – मानव-जीवन को अनमोल बनाने हेतु महापुरुषों ने निम्नलिखित उदाहरण दिए हैं-
(i)
 महात्मा गाँधी ने तीन बन्दरों के माध्यम से यह सन्देश दिया है कि बुरा मत देखो, बुरा मत बोलो और बुरा मत सुनो।
(ii) ‘श्रीमद्भगवद्गीता’ के दूसरे अध्याय में श्रीकृष्ण कछुए के उदाहरण के माध्यम से यह सन्देश देते हैं कि जैसे भय की आहट पाते ही कछुआ अपने अंग समेट लेता है, वैसे ही मनुष्य को
बुराई के स्रोत से दूर हो जाना चाहिए।


प्रश्न 3 – इस पाठ में बुराई से बचने का क्या उपाय बताया गया है?

उत्तर – इस पाठ में बुराई से बचने का यही उपाय बताया गया है कि हमें अपनी इन्द्रियों पर निंयत्रण रखना चाहिए। हमारे शरीर में इन्द्रियों (नाक, आँख, जीभ, कान आदि) के जो द्वार हैं, उन्हीं के माध्यम से बुराई हमारे अन्दर प्रवेश करती है। अतः हमें इन इन्द्रियों के निरर्थक उपयोग से सावधान रहना चाहिए।


प्रश्न 4 – ‘गीता’ की व्यावहारिक सोच मनुष्यों के लिए किस प्रकार लाभकारी है?

उत्तर – ‘गीता’ के दूसरे अध्याय में कछुए के उदाहरण से यह सन्देश दिया गया है कि हमें बुराई की आहट पाते ही अपनी इन्द्रियों को उसी तरह समेट लेना चाहिए जैसे भय की आहट पाकर कछुआ अपने अंग समेट लेता है। गीता की यह व्यावहारिक सोच मनुष्यों को बुरा न बोलने, बुरा न सुनने, बुरा न देखने के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए हानिकारक पदार्थों का सेवन न करने तथा कुसंगति से दूर रहने का संदेश भी देती है। अतः ‘गीता’ की यह व्यावहारिक सोच मनुष्यों के लिए अनेक प्रकार से लाभकारी है।


प्रश्न 5 – सात्त्विक और स्वास्थ्यवर्धक भोजन करने के क्या लाभ हैं?

उत्तर – सात्त्विक और स्वास्थ्यवर्धक भोजन करने से हमारा शरीर स्वस्थ तथा हृष्ट-पुष्ट रहता है। यदि हमारा शरीर स्वस्थ और मजबूत होगा, तभी हम अपने अन्दर की ऊर्जा को अच्छे कार्यों में लगाकर जीवन को सफल बना सकते हैं।


आपकी समझ –


प्रश्न 1- किस प्रकार के मार्ग का अनुसरण करके आप जीवन में आगे बढ़ेंगे? अपने विचार व्यक्त करें।

उत्तर – मैं ‘श्रीमद्भगवद्‌गीता’ के दूसरे अध्याय में दिए कछुए के उदाहरण वाले मार्ग का अनुसरण करके जीवन में आगे बढ़ना चाहता/चाहती हूँ। मुझे जब भी और जहाँ भी बुराई दिखाई देगी, मैं अपनी इन्द्रियों को नियन्त्रित करके वहाँ से हटा लूँगा लूँगी। मैं स्वास्थ्यवर्धक भोजन करूँगा करूँगी और मोबाइल, कुसंगति आदि से दूर रहकर अपनी पढ़ाई करूँगा।


प्रश्न 2 – आपके विचार से गाँधी जी के बंदरों के माध्यम से दिया गया संदेश आपके लिए किस प्रकार सहायक है?

उत्तर – यदि कोई बालक अपने आस-पास किसी बुराई को घटित होते देखता है या बुरी बातें सुनता है तब उस बुराई का प्रभाव बालक पर अवश्यक पड़ता है। वह बुराई धीरे-धीरे बालक के व्यवहार में घुल-मिल जाती है। उदाहरण के लिए- यदि कोई बालक घर में अपने पिता के मुख से निकलने वाली गालियाँ सुनता है, तब वह बालक बिना सिखाए ही गालियाँ देने लग जाता है। यदि कोई बालक अपने माता-पिता को चोरी करते हुए देखता है, तब वह भी चोरी करना सीख जाता है। महात्मा गाँधी के तीन बन्दर यही सीख देते हैं- बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो और बुरा मत बोलो। यदि हम न बुरा देखेंगे, न बुरा सुनेंगे तो हम बुरा भी नहीं बोलेंगे। अतः यह संदेश जीवन में उन्नति करने में हमारे लिए सहायक है।


कुछ करने के लिए-


प्रश्न 1 – आत्म-अनुशासन के द्वारा मनुष्य अपने जीवन को किस प्रकार सफल बना सकता है?

उत्तर – ‘आत्म-अनुशासन’ शब्द का अर्थ है- स्वयं पर अनुशासन या नियंत्रण। यदि मनुष्य अपने मन एवं अन्य इन्द्रियों का केवल सदुपयोग करता है और बुराई की दशा में उनपर नियंत्रण रखता है, तब इसे आत्म-अनुशासन कहा जाता है। आत्म-अनुशासन के बल पर ही मनुष्य कुसंगति से बच सकता है, हानिकारक पदार्थों का सेवन करने से बच सकता है। वह अपने मन को एकाग्र करके अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अपनी पूरी शक्ति व ऊर्जा लगा देता है। इस प्रकार आत्म-अनुशासन के द्वारा मनुष्य अपने जीवन को सफल बना सकता है।