प्रेरक प्रसंग  Class 10 नैतिक शिक्षा (मध्यमा ) Chapter 6 Explain – HBSE Solution

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HBSE Class 10 Naitik Siksha Chapter 6 प्रेरक प्रसंग  Explain for Haryana Board of नैतिक शिक्षा Class 10th Book Solution.

प्रेरक प्रसंग  Class 10 Naitik Siksha Chapter 6 Explain


1. परिस्थिति अनुसार आदर्श

यदि आपसे पूछा जाए कि क्या बनना बेहतर है- अर्जुन या एकलव्य, तो आपका उत्तर क्या होगा? हममें से अधिकतर का उत्तर होगा कि अर्जुन बनना बेहतर है क्योंकि उनको गुरु द्रोण से सीखने का प्रत्यक्ष अवसर मिला। यह सम्भवतः सही चुनाव हो सकता है। आइए, इसे जरा दूसरे दृष्टिकोण से सोचते हैं।

कल्पना कीजिए कि धनुर्विद्या की शिक्षा चल रही है और अर्जुन अभ्यास कर रहे हैं। वे एक लक्ष्य पर निशाना लगाते हैं और प्रत्यंचा खींचकर तीर छोड़ते हैं। तीर लक्ष्य से दो इंच बाईं ओर लगता है। द्रोण अर्जुन को निशाने पर तीर लगाते हुए बारीकी से देख रहे होते हैं। वे अर्जुन को उनकी गलती बताते हैं। अगले अभ्यास में अर्जुन ने उस गलती को दोहराया नहीं इस बार तीर निशाने पर लगा।

अब कल्पना कीजिए कि एकलव्य स्वयं धनुर्विद्या सीख रहे हैं। उनके पास उनकी गलतियों को बताने वाला कोई गुरु नहीं है। न ही उनके पास कोई बना-बनाया समाधान है। कई दिनों के अभ्यास के बाद भी उनका निशाना सही नहीं लग रहा था। उनका तीर लक्ष्य से तीन इंच दूर रह जाता था। मगर एकलव्य ने उम्मीद नहीं छोड़ी। कुछ दिनों के निरन्तर अभ्यास से उनको अपनी गलती समझ में आ गई। उन्होंने वह सुधार ली और तीर निशाने पर लगने लगा।

अब प्रश्न उठता है कि कौन-सी परिस्थिति चुनने योग्य है? आप अर्जुन बनना चाहेंगे या एकलव्य ? यदि आप अर्जुन बनते हैं तो आपको अपनी प्रत्येक गलती को सुधारने के लिए एक मार्गदर्शक गुरु की ज़रूरत होगी, जबकि एकलव्य अपनी गलतियाँ और उनका समाधान खुद ही ढूँढ़ता है। अर्जुन-सा सुखद संयोग सभी को नहीं मिल पाता, अतः परिस्थिति चाहे जैसी भी हो, अपना कार्य सदैव करते रहें।

हम कभी हीनता की भावना मन में न लाएँ। एकलव्य ने साहस, उत्साह और आत्मविश्वास के बल पर संघर्ष करने का दृढ़ निश्चय किया और जंगल में अकेला रहकर धनुर्विद्या का अभ्यास करता रहा। अर्जुन का गुरु के प्रति आदर भाव, अनुशासन, धैर्य, लक्ष्य निर्धारित करना आदि गुण आदर्श शिष्य का उदाहरण हैं अतः परिस्थिति अनुसार ही उत्तम मार्ग का चयन कर हम आदर्श बनने का प्रयास करें, परिस्थिति का रोना न रोएँ।

2. परिश्रम के साथ धैर्य भी

एक बार भगवान बुद्ध अपने अनुयायियों के साथ किसी गाँव में उपदेश देने जा रहे थे। उस गाँव से पूर्व ही मार्ग में उन लोगों को जगह-जगह बहुत सारे गड्ढे खुदे हुए मिले। बुद्ध के एक शिष्य ने उन गड्ढों को देखकर जिज्ञासा प्रकट की, बहुत से गड्ढों के खुदे होने का क्या तात्पर्य है?

बुद्ध बोले, पानी की तलाश में किसी व्यक्ति ने इतने गड्ढे खोदे हैं। यदि वह धैर्यपूर्वक एक ही स्थान पर और गहरा गड्ढा खोदता तो उसे पानी अवश्य मिल जाता। पर वह थोड़ी देर गड्ढा खोदता और पानी न मिलने पर दूसरा गड्ढा खोदना शुरू कर देता। व्यक्ति को परिश्रम करने के साथ-साथ धैर्य भी रखना चाहिए।