संघर्षों में विजय का मार्ग Class 12 नैतिक शिक्षा (उत्तरा) Chapter 6 Explain – HBSE आदर्श जीवन मूल्य Book Solution

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संघर्षों में विजय का मार्ग Class 12 Naitik Siksha Chapter 6 Explain


जीवन के संघर्षों में हर समय, न घबरा रह बस मेरी याद में।
मन बुद्धि तू सौंप दे मुझको अब, संशय नहीं, पायेगा मुझको तब।

हे भारत की भावी ऊर्जा! आपने पिछले अध्यायों में पढ़ा कि महाभारत के युद्ध के समय मोहग्रस्त अर्जुन को कर्त्तव्य का मार्ग वताते हुए श्रीकृष्ण ने उसे गीता का उपदेश दिया था। ऊपर दिए श्लोक का सरलार्थ आपने पढ़ा। तब भगवान् का यह संकेत सन्देश अर्जुन के लिए था क्योंकि उस समय महाभारत युद्ध का वातावरण था। तनाव-दबाव, शोक-मोह के कारणं महापराक्रमी वीर योद्धा अर्जुन का मनोबल गिर चुका था। उस समय अर्जुन को दो चीजों की बहुत आवश्यकता थी- युद्ध रूपी कर्त्तव्य कर्म का पालन, लेकिन कमजोर मन से नहीं, मानसिक दृढ़ता बनाए रखकर ! ‘श्रीमद्भगवाद्‌गीता’ का यह प्रेरक भाव आज भी हमें यही संदेश देता है कि हमें भगवान् का स्मरण बनाए रखते हुए युद्ध अर्थात् अपने कर्त्तव्य का पालन करना चाहिए!

प्यारे बच्चो! ‘श्रीमद्भगवद्‌गीता’ ज्ञान का अक्षय स्रोत है। वास्तव में ‘गीता’ सार्वभौमिक और सार्वकालिक ग्रन्थ है। इसलिए इसमें समाया हुआ न तो यह सन्देश केवल उस महाभारत युद्ध तक के लिए सीमित हो सकता है और न ही केवल अर्जुन के लिए। महाभारत केवल तभी थी ऐसा नहीं है। प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में महाभारत तो आज भी है. अनेक रूपों में है। वैचारिक अर्थों में यह कहा जा सकता है कि जीवन संघर्ष ही महाभारत है। कुछ विचारकों ने तो जीवन की परिभाषा ही संघर्ष के अर्थों में की है। माँ के लिए बच्चे के जन्म से लेकर उसका लालन-पालन आदि- ये सब संघर्ष ही तो हैं। हर प्रकार के संघर्ष का सामना हम कैसे करें यह बात ‘श्रीमद्भगवद्‌गीता’ हमें बताती है, हमारा मार्गदर्शन करती है।

प्यारे वि‌द्यार्थियो। एक चार अपने जीवन तथा आस-पास के वातावरण पर अपनी नजर डालो और विचारपूर्वक देखो। आप पाओगे कि पढ़ाई करना, आगे बढ़ना, कहीं प्रवेश के लिए संघर्ष, कहीं आजकल अलग-अलग तरह की प्रतियोगिताएँ (Competition)- ये सब संघर्ष ही तो हैं। इसके अतिरिक्त कहीं हमारे मन के अन्दर वृत्तियों (ईर्ष्या, काम, क्रोध, अहंकार आदि) के संघर्ष तो कहीं बाहर परिस्थितियों की अनुकूलता-प्रतिकूलता रूप में संघर्ष- ये सभी महाभारत का ही रूप हैं। आवश्यकता यह है कि हमारा मन किसी भी प्रकार से उकताए नहीं, घबराए नहीं। संघर्षों को देखकर यदि हमारा मन ही लड़खड़ा गया, डगमगा, घबरा या उकता गया तब न तो सफलता प्राप्त हो पाएगी और न ही आगे बढ़ने का मार्ग प्रशस्त हो पाएगा। यदि मन ही हार मानकर बैठ गया तो शरीर की स्थिति कोई भी नहीं सँभाल पाएगा।

अतः प्यारे बच्चो! संघर्षो रूपी महाभारत में विजय अथवा सफलता के लिए मानसिक दृढ़ता बहुत आवश्यक है। हमें यह बात अच्छी प्रकार से समझ लेनी चाहिए कि भौतिकवादी विज्ञान के पास मानसिक दृढ़ता बनाए रखने अथवा गिरे हुए मनोबल को फिर से उठाने के लिए कोई उपाय या साधन नहीं है। गिरे हुए मनोबल को फिर से उठाने का एकमात्र साधन है- भगवान् का स्मरण, ध्यान करना। यह मनोवैज्ञानिक सत्य है कि इस संसार में न केवल दूसरे लोगों, वस्तुओं आदि की बहुत अधिक चिन्ता, तनाव आदि बल्कि क्रोधावेश, ईर्ष्या द्वेष आदि भी अन्दर-ही-अन्दर हमारे मन को कमजोर करते हैं। भगवान् का नाम-ध्यान, उन्हें स्मरण करके संघर्षों रूपी महाभारत में प्रवेश करने का अभिप्राय है- मज़बूत एवं निश्चिन्त मन से कर्त्तव्य का पालन करना।

हे स्नेह बन्धु ! अपने जीवन में एक बार इस सुझाव को आजमा कर देखो। कुछ क्षण नित्यप्रति भगवान् का ध्यान करो। भगवान् का जो भी नाम या स्वरूप आपको प्रिय लगता है, उसी का ध्यान करो। कोई आग्रह नहीं नाम रूप का, लेकिन करो अवश्य। आप स्वयं विशेष ऊर्जा, बल, ओज, शक्ति, शान्ति का अनुभव करेंगे। आप का कर्तव्य-पथ आसान होता जाएगा, परिस्थितियों के संघर्ष आप पर अपना प्रभाव नहीं बना पाएँगे। जब कभी कुछ भी ऐसा लगने लगे, उसी समय फिर भगवान् का स्मरण ध्यान कर लो। यह मन का आहार है, मन की शक्ति है। इसे पहचानो और अपने कर्त्तव्य पर बिना घबराए-उकताए आगे बढ़ते रहो। आप पाएँगे कि आप भी अर्जुन की भाँति दुविधा से निकलकर अपना लक्ष्य प्राप्त करने में सफल रहेंगे।