Class 12 Hindi New Naitik Siksha (आदर्श जीवन मूल्य (उत्तरा) BSEH Solution for Chapter 5 शांत मन-उन्नत जीवन Explain for Haryana board. CCL Chapter Provide Class 1th to 12th all Subjects Solution With Notes, Question Answer, Summary and Important Questions. Class 12 Hindi mcq, summary, Important Question Answer, Textual Question Answer, Word meaning, Vyakhya are available of नैतिक शिक्षा Book for HBSE.
Also Read – HBSE Class 12 नैतिक शिक्षा Solution
Also Read – HBSE Class 12 नैतिक शिक्षा Solution in Videos
HBSE Class 12 Naitik Siksha Chapter 5 शांत मन-उन्नत जीवन Explain for Haryana Board of नैतिक शिक्षा Class 12th Book Solution.
शांत मन-उन्नत जीवन Class 12 Naitik Siksha Chapter 5 Explain
असंयमी पुरुष की न हो बुद्धि स्थिर, प्रभु के प्रति श्रद्धा कैसे हो फिर।
मिले शान्ति क्योंकर न श्रद्धा जहाँ, शान्ति रहित को भला सुख कहाँ?
हे स्नेह बन्धु! आपने अपने आस-पास कुछ लोगों को सुखी तथा कुछ लोगों को दुखी देखा होगा। कभी आपने गरीब व्यक्ति को खुश देखा होगा तो कभी धनवान व्यक्ति को भी दुखी व उदास देखा होगा। शायद आप सब जानते होंगे कि इस सृष्टि में सब सुख चाहते हैं। ऐसा कोई भी मनुष्य नहीं होगा, जो अपने जीवन में दुःख चाहे या दुःख की कामना या प्रार्थना करे। सुख सभी लोगों की स्वाभाविक माँग है। सबकी एक ही भावना रहती है- सुख में भूयात्, दुःख में मा भूयात् अर्थात् मेरे जीवन में सुख ही सुख हो, दुःख कभी न हों। इस भावना में कहीं जाति, वर्ग, वर्ण, देश-काल की कोई सीमा नहीं है। इस विषय में सभी लोग एक ही धरातल पर हैं। शायद आप भी जीवन में ऐसे ही सुखों की कामना करते होंगे।
हे भारत की भावी ऊर्जा! इस सृष्टि में एक और अनोखी बात भी ध्यान देने योग्य है। आश्चर्य यह है कि इस संसार में सुख चाहते हुए भी मनुष्य मानसिक रूप से सुखी दिखाई नहीं देता। उसे देखकर लगता है मानो तनाव-दबाव उसे घेरे रहते हैं। आओ, विचार करें इसका क्या कारण है। क्यों ‘श्रीमाद्भगवाद्गीता’ में भगवान् श्रीकृष्ण यहाँ यह संकेत कर रहे हैं- ‘अशान्तस्य कुतः सुखम्’ अर्थात् जिसका मन शान्त नहीं है, उसके लिए सुख कहाँ? वस्तुतः वर्तमान में समूची मानव-जाति भौतिकवादी दौड़-होड़ तथा बाहर के सुख-संसाधनों तक सिमटी हुई हैं। मानव शरीर को सुख-दुःख अनुभव कराने वाला तत्त्व (Feeling factor) मन है। जब तक मनुष्य का मन स्थिर नहीं होगा, तब तक उसे शान्ति नहीं मिलेगी। यदि मनुष्य का मन अशान्त होगा तो बाहर कितनी भी सुख-सुविधाएँ क्यों न हों, वह मनुष्य सुखी नहीं रह सकता है।
प्रिय वत्स! आप सभी ने देखा होगा कि बात-बात में तनाव लेना या तनाव देना आज का एक फैशन-सा बनता जा रहा है। आप एक बार विचार करें। सोचें कि यदि तनाव में मन है, बाहर सुविधाएँ हैं तब क्या इसे ही सुख की स्थिति कहेंगे? मन की स्थिरता का नाम ही सुख है और मन की अस्थिरता का नाम ही दुःख है। इसका तनिक और वैचारिक विश्लेषण करते हैं- जब सब कुछ अनुकूल रहता है तो मन स्थिर रहता है और मनुष्य को सुख का अनुभव होता है। वहीं प्रतिकूलता या उसकी आशंका भी हुई, तभी हमारा मन अस्थिर होने लगता है और साथ-ही-साथ अशान्त और फिर दुःखी हो जाता है।
प्यारे विद्यार्थियो! यह बात सदैव ध्यान में रखना कि जीवन में आवश्यक है- अध्यात्म। ‘अध्यात्म’ शब्द का अर्थ है- परमात्मा का आधार स्वीकार करके संसार का व्यवहार। केवल परमात्मा ही वह सत्ता है, जो शाश्वत है, स्थिर है, जहाँ अनुकूलता-प्रतिकूलता का कोई प्रभाव नहीं, हर स्थिति-परिस्थिति में एक रूप, एक समान। मन को उस शाश्वत अर्थात् सदा स्थिर रहने वाली सत्ता का आधार दे दो। यदि आप सुख चाहते हो तो सबसे पहले प्रातःकाल कुछ क्षण ध्यान करने का स्वभाव बनाओ। जिस प्रकार हम सुबह उठते ही मोबाइल को चार्जिग पर लगाते हैं, बिजली के साथ तार जोड़ते हैं, मोबाइल चार्ज होता है, दिनभर साथ निभाता है। ठीक उसी प्रकार प्रातःकाल में ही मन को परमात्मा रूपी परमशक्ति से जोड़ो। परमात्मा शक्ति और शान्ति के अक्षय भण्डार हैं। आप स्वयं स्वाभाविक स्थिरता, अद्भुत शांति व अनूठे मनोबल का अनुभव करेंगे। यदि आपका मन मजबूत और शान्त होगा तो बाहर की प्रतिकूल परिस्थितियाँ भी विचलित नहीं कर पाएँगी और मन अशान्त हुआ तो बाहर के साधन सुविधाएँ भी सुखी नहीं रख पाएँगे।
प्रिय वत्स! इस तथ्य को एक सत्य घटना के माध्यम से समझने का प्रयास करते हैं। प्राचीन समय की बात है कि राजा सिकन्दर किसी राज्य पर आक्रमण कर के वापस आ रहा था। मार्ग में उन्हें एक संत मिले। सिकन्दर ने उन्हें प्रणाम किया और कुछ माँगने को कहा। वह भी इस भाव से कहा ‘महाराज! यहाँ ऊबड़-खाबड़ स्थान पर पड़े हो, रात होने को है, मेरे साथ चलो, वहीं आराम करना, यहाँ कहाँ परेशान हो रहे हो? संत ने कहा, ‘सिकन्द्र, मैं यहाँ बहुत आराम में हूँ और मुझे तुझसे अच्छी नींद आएगी।’ सिकंदर ने पूछा ‘वो कैसे?’ संत ने उत्तर दिया ‘तेरे तन का आसन कोमल होगा, लेकिन मन में ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध, आवेश, अहंकार, लूटमार की कठोरता भरी है। शान्ति मन का विषय है। मेरे तन का आसन कठोर हो सकता है, लेकिन मन में सबके लिए ईश्वरीय भाव और सद्भाव की कोमलता है।’
प्यारे बच्चो। यदि तुम भी जीवन में सुख प्राप्त करना चाहते हो तो तुम्हें भी अध्यात्म का सहारा लेना पड़ेगा। तुम्हें भी मन से कठोरता; कटुता, क्रोध, आवेश, तनाव, दबाव आदि निकालने पड़ेगें। अतः आओ सभी के लिए प्रेम व सद्भाव रखकर कर्तव्य-पथ पर आगे बढ़ें, शान्ति अनुभव होगी और कर्त्तव्य के मार्ग पर बढ़ना आसान होगा।