Class 10 Hindi New Naitik Siksha (आदर्श जीवन मूल्य (मध्यमा ) BSEH Solution for Chapter 4 कर्म ही जीवन का आधार Explain for Haryana board. CCL Chapter Provide Class 1th to 12th all Subjects Solution With Notes, Question Answer, Summary and Important Questions. Class 10 Hindi mcq, summary, Important Question Answer, Textual Question Answer, Word meaning, Vyakhya are available of नैतिक शिक्षा Book for HBSE.
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HBSE Class 10 Naitik Siksha Chapter 4 कर्म ही जीवन का आधार Explain for Haryana Board of नैतिक शिक्षा Class 10th Book Solution.
कर्म ही जीवन का आधार Class 10 Naitik Siksha Chapter 4 Explain
कर्म करना जीवन की स्वाभाविक स्थिति है। शरीर के साथ कर्म का होना स्वाभाविक है, लेकिन कर्म के साथ स्वभावतः कुछ प्रश्न जुड़े रहते हैं। कहते हैं कि कर्म प्रारब्ध अथवा पिछले भाग्य के अनुसार होते हैं। ऐसा भी कहा या सुना जाता है कि जैसा भाग्य में है, होना तो वही है। कहीं ऐसा भी कहा जाता है कि करने-कराने वाला तो ईश्वर है। उसकी इच्छा के बिना तो पत्ता भी नहीं हिल सकता। इन बातों को देखने-सुनने से ऐसा प्रतीत होता है कि मनुष्य कर्म करने के लिए स्वतंत्र है ही नहीं। यह सत्य है तो हम कुछ नया कैसे कर सकते हैं?
बच्चो ! ऐसे विचार आपके मन में भी उठ सकते हैं। आओ हम श्रीमद्भगवद्गीता के एक श्लोक के माध्यम से विचार करते हुए उपरोक्त प्रश्नों या भ्रांतियों का समाधान करें। गीता के 18वें अध्याय के 61वें श्लोक में स्पष्ट किया गया है कि ईश्वर सभी प्राणियों के हृदय में स्थित होकर अपनी माया शक्ति से सबको जहाँ-तहाँ चलाते हैं। इस श्लोक के अनुसार पहली बात यह है कि ईश्वर सभी प्राणियों के हृदय में चेतना के रूप में स्थित हैं। शरीर से जो भी क्रियाएँ हो रही हैं, उसके मूल में ईश्वर की ही शक्ति या चेतना है। वास्तविकता तो यह है कि चेतना शक्ति के रूप में ईश्वर के साथ होने से ही सभी कर्म हो रहे हैं। विभिन्न उपकरणों के साथ बिजली का करंट है तभी उपकरण अपना कार्य कर पा रहे हैं। ठीक यही स्थिति शरीर में ईश्वर की चेतना शक्ति की है। ईश्वरीय चेतना शक्ति के बिना शरीर अपने आप कुछ भी नहीं कर सकता। ऐसा पहले से स्पष्ट किया जा चुका है कि बाहर प्रकृति के पीछे भी परमात्मा की सत्ता है। इसलिए यह बात तो सर्वथा सत्य और स्पष्ट है कि करने-कराने वाली परमात्मा की ही शक्ति है।
दूसरी वात प्रारब्ध या भाग्य की है। इस विषय में इसी श्लोक में स्पष्ट किया गया है कि ईश्व ही यंत्र की तरह सबको चला रहे हैं। बच्चो! आप इसे इस प्रकार से समझ सकते हो कि बिजली का करंट एक ही है। बिना करंट के कोई भी उपकरण काम नहीं कर सकता। सच्चाई यह है कि करंट तो केवल शक्ति है। आगे यंत्र या उपकरण जैसा है, वैसा ही काम होता है। उसी करंट की शक्ति से फ्रिज या ए०सी० ठंडक देता है तो वहीं ऊर्जा से गीजर गर्म पानी, कहीं पंखे की हवा तो कहीं बल्ब के माध्यम से रोशनी। इन सबका काम अलग-अलग है, लेकिन बिजली एक ही है।
ईश्वर की चेतना एक ही है, लेकिन सबके कार्य अपने-अपने प्रारब्ध या अन्तःकरण के उपकरण की शक्ति के अनुसार होते हैं। हे विचारशील नवयुवको! आप इस बात का अवश्य ध्यान रखें कि मनुष्य अपने प्रारब्ध या भाग्य का निर्माता स्वयं ही है। मनुष्य के जो पिछले कर्म हैं, वे ही आज के प्रारब्ध या भाग्य हैं। एक प्रश्न यह है कि मनुष्य अपना भाग्य बनाने अथवा कर्म करने मात्र में स्वतंत्र है ही कहाँ, जो यह कहा जाए कि मनुष्य अपने भाग्य को बनाने वाला स्वयं है।
इस विषय पर विचार करो। मन में एकाग्रता और समझने-जानने की उत्सुकता को बनाए रखो। श्लोक के अनुसार ईश्वर ही सबकी चेतना है, सब के हृदय में है, तो निश्चय ही मेरे भीतर भी है। वही मेरी चेतना है। मेरा शरीर उसी की शक्ति से कुछ कर रहा है। हमारे लिए ऐसा समझना और मान लेना इसलिए भी आवश्यक है कि हम जो कर्म कर रहे हैं वह अहंकारपूर्ण न हो। यदि हम अहम् से कर्म करेंगे तो कहीं-न-कहीं आसक्ति, आवेश, ईर्ष्या, द्वेष तथा अहं की तुष्टि के लिए लोभ आदि
वृत्तियाँ भी साथ आएँगी। इन सबके अधीन होकर किए गए कर्म बुराइयों की ओर ले जाएँगे जिससे हमारा प्रारब्ध या भाग्य वैसा ही बनता जाएगा। इसलिए आवश्यक है कि हम ईश्वरीय चेतना शक्ति को स्वीकार करते हुए कर्म करें। जीवन का आधार अच्छा होगा तो कर्मों की प्रेरणा भी अच्छी होगी तथा अपने आप आगे का प्रारब्ध या भाग्य भी अच्छा होगा। इसलिए यह नहीं सोचना है कि हमारे हाथ में क्या है? अपने विवेक को जगाते हुए दृढ़ संकल्प करो। ईश्वरीय भाव के साथ अपने कर्म में लगे रहो। गीता का आशीर्वाद सदा साथ है, ऐसा अनुभव करते रहो। ऐसा विश्वास रखने से जीवन यात्रा निश्चित ही सुखद व मंगलमय होगी।